Thursday, November 7, 2024

Latest Posts

भारत भवन में आयोजित ‘नृत्य में अद्वैत’ कार्यशाला के दूसरे दिन हुई विभिन्न गतिविधियां

आत्मज्ञान के लिए मन की शुद्धता,सूक्ष्मता एवं एकाग्रता आवश्यक : स्वामिनी विमलानंद सरस्वती
81 वर्षीय डॉ. पदमा सुब्रमण्यम ने दी भरतनाट्यम की मनमोहक प्रस्तुति

मंच पर कलाकार सृष्टिकर्ता की भूमिका में होता है

सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए भरतनाट्यम नृत्यांगना, कोरियोग्राफर डॉ. रेवती रामचंद्रन ने कहा कि इस तरह के आयोजन मन को विस्तारित करते हैं। यह हमारे आंतरिक एवं आध्यात्मिक विकास में उपयोगी है। उन्होंने कहा कि जब तक हम नृत्य करते हैं तो देह भाव से ऊपर उठकर अपनी पहचान को विलोपित कर देते हैं। कलाकार मंच पर सृष्टिकर्ता की भूमिका में होता है, जो अपनी रचनात्मकता से कला का निर्माण करता है। डॉ. रेवती ने कहा कि भारत में कला परम्परा दर्शकों के उत्थान के लिए है और कलाकार की यही प्राथमिकता भी होना चाहिए।जैसी दृष्टि होती है, वैसी सृष्टि दिखाई देती है।

नृत्य भी एक साधना है

कार्यशाला के अगले सत्र में चिन्मय मिशन कोयंबटूर की प्रमुख स्वामिनी विमलानंद सरस्वती ने कहा कि कला का सौन्दर्य आनंद में है। कला की विशेषता है कि उसमें सदैव नवीनता विद्यमान होती है। उन्होंने कहा कि भगवान आसन पर बैठे तो कला है और चलें तो नृत्य है। स्वामिनी ने कहा कि नृत्य भी एक साधना है, जिससे मन परिष्कृत होता है। चर्चा सत्र को आगे बढ़ाते हुए स्वामिनी विमलानंद ने वेदांत का उदारहण देते हुए कहा कि आत्मज्ञान के लिए मन की शुद्धता, सूक्ष्मता एवं एकाग्रता आवश्यक है। आत्मज्ञान की प्राप्ति ज्ञान मात्र से होती है, इसलिए आवश्यक है कि मन राग, द्वेष से मुक्त हो।

शोधार्थियों, नृत्य अध्येता और छात्र-छात्राओं के साथ संवाद

शाम को हुए ओपन सत्र में पद्मविभूषण डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम, स्वामिनी विमलानंद सरस्वती, डॉ कुमकुमधर ने शोधार्थियों, नृत्य अध्येता और छात्र-छात्राओं के साथ संवाद किया। डॉ.पद्मा सुब्रमण्यम ने कहा कि गुरु के प्रति आत्म-समर्पण करने से संसार की हर वस्तु प्राप्त हो सकती हैं। गुरु ईश्वर के समान है। जब आप सार्थक दिशा में बढ़ते हैं तो गुरु का आशीष स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है। गुरु, करुणा के सागर के समान होता है, शिष्य को इसी भाव में रहकर स्वयं को समर्पित करना चाहिए।

डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम ने दी नृत्य प्रस्तुति

बहुकला केंद्र के अंतरंग सभागार में बैठे सैकड़ों कला प्रेमी  उस समय विलक्षण प्रस्तुति के साक्षी बने जब स्वयं डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम मंच पर भरतनाट्यम की प्रस्तुति देने पहुंचीं। 81 वर्षीय डॉ सुब्रमण्यम ने शंकराचार्य विरचित भजन गोविन्दम्, भज गोविन्म्… की मनोहारी प्रस्तुति दी। लगभग 15 मिनट की इस प्रस्तुति के दौरान पदमा जी ने आंगिक, वाचिक, कदमताल और भाव भंगिमाओं का एक ऐसा संसार रचा जिसमें दर्शक पूरी तरह सहभागी बने।  मन को छू जाने वाली इस प्रस्तुति के अंत में दर्शकों ने लगभग 5 मिनट तक पदमा जी को स्टेंडिंग ओवियेशन दिया।  

भक्ति गीतों पर झूम उठे श्रोता

कार्यशाला के दूसरे दिन का समापन संकीर्तन की प्रस्तुति के साथ हुआ। इसमें प्रसिद्ध गायक हर्षल पुलेकर ने भक्ति गीतों के माध्यम से सभी को भाव विभोर किया। एक के बाद एक मंत्रमुग्ध कर देने वाले संकीर्तनों को सुन श्रोता भक्ति रस में झूमते नजर आये। पुलेकर ने जय-जय राधा रमण…, कौन कहता है भगवान आते नहीं…. सहित कई भक्ति गीतों को पेश किया।

तीन दिवसीय कार्यशाला में आज

बहुकला केन्द्र भारत भवन में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला के अंतिम दिन बुधवार को सुबह 9 बजे से विभिन्न सत्र शुरू होंगे। वहीं शाम 7 बजे ओपन सत्र तथा संकीर्तन के साथ कार्यशाला का समापन होगा।

Latest Posts

spot_imgspot_img

Don't Miss

Stay in touch

To be updated with all the latest news, offers and special announcements.